BLACK HOLE -:यह ब्रह्मांड का ऐसा दायित्व है जो कई लोगों को सहजोंये हुए है। ब्लैक होल के बारे में सबसे पहले विचार देने वाले वैज्ञानिक प्रोफेसर johon michell (1724-1793) में उन्होंने ब्लैक होल के बारे में विचार सन 1783 में रखा।
उनके बाद 1796 में पियरे साइमन ने (1749-1827) ब्लैक होल के बारे में बताया कि ब्लैक होल ब्रह्मांड का एक पिंड है जिसका गुरुत्वाकर्षण बहुत अधिक है । कि इसके पार रोशनी का भी जाना संभव नहीं है और अंतरिक्ष में उसके पास आने वाली हर चीज को अपनी और आकर्षित करता है।
इतना ही नहीं नहीं की BLACK HOLE के जितना पास होते हैं समय का प्रभाव भी उतना ही कम हो जाता है और BLACK HOLE अंदर तो समय का कोई अस्तित्व ही नहीं होता है।
ब्लैक होल अधिक घनत्व द्रव्यमान वाला पिंड होता है। ब्रह्मांड में अगर कोई पिंड का द्रव्यमान और घनत्व अधिक कर दे तो वह ब्लैक होल बन जाता है।
उदाहरण : 1 यदि पृथ्वी का घनत्व बढ़ा दिया जाए और उसे 1.5 मीटर कर कर दिया जाए तो उसका गुरुत्वाकर्षण बढ़ जाएगा और वह ब्लैक होल बन जाएगी।
2 पृथ्वी से 1300000 गुना हमारे सूर्य को संकुचित करके एक छोटे से मटर के दाने के समान कर दिया जाए तो वह एक ब्लैक होल बन जाता है।
BLACK HOLEउत्पत्ति- :ब्लैक होल की उत्पत्ति तारों से हुयी है ब्रह्मांड में उपस्थित सभी तारों का जन्म गैस के बादलों व धूल कण से होता है ।जिसे निहारिका कहते हैं। नाहरिका में हाइड्रोजन और हीलियम गैस होता है और बहुत कम मात्रा में अन्य प्राकृतिक तत्व होते हैं ।इन बादलों में घनत्व मे वृद्धि होती है कुछ समय बाद अपने गुरुत्व के कारण संकुचित होने लगते हैं।और ताप इतना बढ़ जाता है की हाइड्रोजन के नाभिक आपस में टकरा कर हीलियम के नाभिक का निर्माण करने लगते हैं।
ताप नाभिकीय संलयन में निकली उस्मा से तारे गुरुत्व संतुलन में होता है। तारों में मौजूद हाइड्रोजन गैस धीरे-धीरे खत्म हो जाती है। और वह पिंड घिरे-धिरे ठंडे होने लगता है।
और 1.4 गुना द्रव्यमान वाले तारे जो गुरुत्वाकर्षण के खिलाफ स्वम को संभाल नहीं पाते हैं। और ऐसे तारे
। अंदर एक विस्फोट होता है।
जिसे सुपरनोवा कहते हैं। इस विस्फोट के बाद तारे का अधिक घनत्व वाला टुकड़ा बचता है। वह अधिक घनत्व वाले टूकडे न्यूट्रॉन स्टार बन जाता है। ऐसी तारों पर अधिक गुरुत्व खिंचाव के कारण तारा संकुचित होने लगता है। अत: तारा निश्चित क्रान्तिक में संकुचित हो जाता है। और अपार अतिरिक्त संकुचन के कारण अंतरिक्ष और समय दोनों विकृत हो जाते हैं।
वह समय अंतरिक्ष और समय का अस्तित्व नहीं होता है। और वह अदृश्य हो जाता है कि अदृश्य पिंड को ब्लैक होल कहता है।
ब्लैक होल का संपूर्ण द्रव्यमान एक बिंदु के केंद्र में होता है जिसे केंद्रीय सिंगुलेरिटी पांइप कहते हैं।
इसके आसपास के क्षेत्र को घटना होरीजन कहते हैं कि यह घटना होरीजन के बाहर प्रकाश का जाना असंभव है
आइंस्टीन रिलेटिव थॉयरी के अनुसार ब्लैक होल निश्चित दूरी पर स्थित पिंड के समय की गति बेहद धीमी और मंद हो जाती है ।समय निरपेक्ष है ब्रह्मांड में समय अलग-अलग गति में होता है।
ब्लैकहोल के क्षैतिज में आकर गिरने वाले पिंड टुकड़ों में बंट जाते हैं। और वह वस्तु या पिंड धीरे-धीरे अदृश्य हो जाएगा और अज्ञात स्थान पर चला जाएगा
1 steelar mass ब्लैक होल - ब्रह्मांड में ऐसे कई प्रकार के ब्लैक होल होते हैं जो अपने विशिष्ट गुणों के कारण उत्साहाने जाते हैं ऐसे तारे हैं जिनकी द्रव्यमान हमारी सूर्य की कयी गुना अधिक है और गुरुत्व के संकुचन के कारण वह ब्लैक होल बन जाता है।
2 Supper massive ब्लैक होल -: एसे ब्लैक होल जिसका निर्माण आकाशगंगा के केंद्र में होता है और घनत्व अपार होता है, जो बहुत ही विशाल होते हैं ऐसे ब्लैक होल का द्रव्यमान सूर्य से लाखों गुना ज्यादा होता है।
ब्लैक होल अदृश्य होने के बावजूद भी अपने आसपास स्थित आकाशीय पिंडों पर अपना गुरुत्व प्रभाव डालते हैं। ब्लैक होल के बीच में अंधेरा होता है और उस के आसपास खींच रहे पिंड दिखाई देते हैं। कभी-कभी तो ब्लैक होल तारामंडल को गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से निगलता हुआ दिखाई देता है ।ब्लैक होल में कोई छेद नहीं होता है यह मरे हुए तारे के अवशेष होते हैं ब्लैक होल अपने आसपास आने वाले ग्रह, धूमकेतु, सोरमण्ल को भी निगल लेते हैं। । ।
ब्लैक होल अपनी निश्चित दूरी पर स्थित वस्तु को ही अपनी और आकर्षित करता है दूर की वस्तु को नहीं है।
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